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O Mandir Ke Shankh, Ghantiyon | Ankit Kavyansh

2:58
 
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ओ मन्दिर के शंख, घण्टियों | अंकित काव्यांश

ओ मन्दिर के शंख, घण्टियों तुम तो बहुत पास रहते हो,

सच बतलाना क्या पत्थर का ही केवल ईश्वर रहता है?

मुझे मिली अधिकांश

प्रार्थनाएँ चीखों सँग सीढ़ी पर ही।

अनगिन बार

थूकती थीं वे हम सबकी इस पीढ़ी पर ही।

ओ मन्दिर के पावन दीपक तुम तो बहुत ताप सहते हो,

पता लगाना क्या वह ईश्वर भी इतनी मुश्किल सहता है?

भजन उपेक्षित

हो भी जाएं फिर भी रोज सुने जाएंगे।

लेकिन चीखें

सुनने वाला ध्यान कहाँ से हम लाएंगे?

ओ मन्दिर के सुमन सुना है ईश्वर को पत्थर कहते हो!

लेकिन मेरा मन जाने क्यों दुनिया को पत्थर कहता है?

  continue reading

590 ตอน

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ओ मन्दिर के शंख, घण्टियों तुम तो बहुत पास रहते हो,

सच बतलाना क्या पत्थर का ही केवल ईश्वर रहता है?

मुझे मिली अधिकांश

प्रार्थनाएँ चीखों सँग सीढ़ी पर ही।

अनगिन बार

थूकती थीं वे हम सबकी इस पीढ़ी पर ही।

ओ मन्दिर के पावन दीपक तुम तो बहुत ताप सहते हो,

पता लगाना क्या वह ईश्वर भी इतनी मुश्किल सहता है?

भजन उपेक्षित

हो भी जाएं फिर भी रोज सुने जाएंगे।

लेकिन चीखें

सुनने वाला ध्यान कहाँ से हम लाएंगे?

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