Atma-Bodha Lesson # 46 :
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वक्ता : पूज्य स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी
आत्म-बोध के 46th श्लोक में आचार्यश्री हमें आत्म-साक्षात्कार अर्थात आत्म-अनुभव का क्या चमत्कारी प्रभाव होता है वो बताते हैं। सबसे पहले तो आत्मानुभव के बारे में पू गुरूजी ने यह स्पष्ट किया की यह साक्षात्कार जीव-भाव बाधित करने के बाद ही होता है। अगर हम रस्सी को सर्प समझते ही रहेंगें तब तक उसके अधिष्ठान की असलियत का कभी भी पता नहीं चल सकता है। जब कल्पना रहित अर्थात विरक्त अर्थात सन्यस्त मन से वेदांत चिंतन करते हैं तो पहले बुद्धि को संतुष्ट करें, फिर ज्ञान को हृदयांवित करें - तभी अनुभव होता है। जब अनुभव होता है तब उसी क्षण सब ग्रंथियों का भेदन हो जाता है - अहं और मम सब जड़ से समाप्त हो जाते हैं। यह वैसे ही होता है जैसे एक दिशाओं से भ्रमित व्यक्ति को एक दिशा मिलते ही सभी दिशाओं का पता चल जाता है।
इस पाठ के प्रश्न :
- १. आत्मानुभव कब होता है ?
- २. जीव-भाव एवं उसके संसार से मोह त्यागना क्यों आवश्यक है?
- ३. आत्मानुभव के फल-स्वरुप और क्या-क्या होता है?
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