Atma-Bodha Lesson # 36 :
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आत्म-बोध के 36th श्लोक में भी आचार्यश्री हमें आत्म-अभ्यास के लिए कुछ और लक्षण प्रदान कर रहे हैं। ध्यान रहे ये लक्षण उन्ही साधकों के लिए हैं जिन्होंने अपने जीव-भाव को बाधित कर दिया है। सर्प के निषेध के बाद ही रज्जु का ज्ञान होता है, और ज्ञान के बाद उस ज्ञान में निष्ठा की साधना होती है। इस श्लोक में आचार्य कह रहे हैं दृढ़ता से इस बात को देखो और उसके प्रति भावना उत्पन्न करो की हम नित्यमुक्त हैं, नित्यशुद्ध हैं, एक हैं, अखण्डानन्द हैं अद्वय हैं। हम सत्यम, ज्ञानं, अनन्तं ब्रह्म हैं।
इस पाठ के प्रश्न :
१. निदिध्यासन का अधिकारी कौन होता है?
२. निदिध्यासन में अगर जीव-भाव बना रहता है तो क्या होगा?
३. आत्मा किस से मुक्त होती है?
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