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ग़ज़ल – घरों के साथ जीवन भी सजाते हैं दिवाली पर

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घरों के साथ जीवन भी सजाते हैं दिवाली पर।

नयी उम्मीद के दीपक जलाते हैं दिवाली पर।

चमकते हैं ये घर आँगन ज़रा झाड़ू लगा अंदर,

ये जाले बदगुमानी के हटाते हैं दिवाली पर।

जुबां मीठी बने सबकी न कड़वे बोल हम बोलें,

बना ऐसी मिठाई इक खिलाते हैं दिवाली पर।

प्रकाशित मन करे ऐसा जलाओ दीप हर घर में,

दिलों से आज अँधियारा मिटाते हैं दिवाली पर।

लबों पर मुस्कुराहट ला भुला दे सब ग़मों को जो,

चलो सब फुलझड़ी ऐसी चलाते हैं दिवाली पर।

ख़ुशी-ग़म धूप छाया हैं कभी हँसना कभी रोना,

मायूसी छोड़ गाते-गुनगुनाते हैं दिवाली पर।

हमें इक जिंदगी मिलती मोहब्बत में ये कट जाए,

गिले-शिकवे सभी अपने भुलाते हैं दिवाली पर।

न जाने कब यहाँ जीवन की अपनी शाम हो जाए,

सभी मतभेद तज मिलते-मिलाते हैं दिवाली पर।

बड़ी मुश्किल से मिलते हैं यहाँ पर यार कुछ सच्चे,

जो अपने रूठ कर बिछड़े मनाते हैं दिवाली पर।

नहीं सोना नहीं चांदी नहीं हीरा नहीं मोती,

गरीबों की दुआ थोड़ी कमाते हैं दिवाली पर।

बड़े छोटे बहुत रिश्ते हमारी ज़िन्दगी में हैं,

चलो इंसानियत को भी निभाते हैं दिवाली पर।

ज़रा सोचो यहाँ दुनिया में सब खुश हों तो कैसा हो,

किसी की ज़िन्दगी से ग़म चुराते हैं दिवाली पर।

ये जीवन एक उत्सव है बड़ी किस्मत से मिलता है,

खुदा का क़र्ज़ थोड़ा तो चुकाते हैं दिवाली पर।

- विवेक अग्रवाल 'अवि'

Write to me on HindiPoemsByVivek@gmail.com

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नयी उम्मीद के दीपक जलाते हैं दिवाली पर।

चमकते हैं ये घर आँगन ज़रा झाड़ू लगा अंदर,

ये जाले बदगुमानी के हटाते हैं दिवाली पर।

जुबां मीठी बने सबकी न कड़वे बोल हम बोलें,

बना ऐसी मिठाई इक खिलाते हैं दिवाली पर।

प्रकाशित मन करे ऐसा जलाओ दीप हर घर में,

दिलों से आज अँधियारा मिटाते हैं दिवाली पर।

लबों पर मुस्कुराहट ला भुला दे सब ग़मों को जो,

चलो सब फुलझड़ी ऐसी चलाते हैं दिवाली पर।

ख़ुशी-ग़म धूप छाया हैं कभी हँसना कभी रोना,

मायूसी छोड़ गाते-गुनगुनाते हैं दिवाली पर।

हमें इक जिंदगी मिलती मोहब्बत में ये कट जाए,

गिले-शिकवे सभी अपने भुलाते हैं दिवाली पर।

न जाने कब यहाँ जीवन की अपनी शाम हो जाए,

सभी मतभेद तज मिलते-मिलाते हैं दिवाली पर।

बड़ी मुश्किल से मिलते हैं यहाँ पर यार कुछ सच्चे,

जो अपने रूठ कर बिछड़े मनाते हैं दिवाली पर।

नहीं सोना नहीं चांदी नहीं हीरा नहीं मोती,

गरीबों की दुआ थोड़ी कमाते हैं दिवाली पर।

बड़े छोटे बहुत रिश्ते हमारी ज़िन्दगी में हैं,

चलो इंसानियत को भी निभाते हैं दिवाली पर।

ज़रा सोचो यहाँ दुनिया में सब खुश हों तो कैसा हो,

किसी की ज़िन्दगी से ग़म चुराते हैं दिवाली पर।

ये जीवन एक उत्सव है बड़ी किस्मत से मिलता है,

खुदा का क़र्ज़ थोड़ा तो चुकाते हैं दिवाली पर।

- विवेक अग्रवाल 'अवि'

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